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रविवार, 31 मई 2009

इस बार 15 दिन का श्राद्ध पक्ष मान्यता और परंपरा के अनुसार श्राद्घ पक्ष को सोलह दिन का माना जाता है, लेकिन पंचांग तिथियों की घट-बढ़ के कारण इसके दिन कम-ज्यादा होते रहते हैं। इस वर्ष श्राद्घ पक्ष पंद्रह दिन का रहेगा। अनंत चतुर्दशी के बाद पूर्णिमा से शुरू होने वाला श्राद्घ पक्ष सर्वपितृ अमावस्या को पूर्ण होता है। इसमें पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक के बीच सोलह तिथियों के अनुसार श्राद्घ किया जाता है। इस बार दो तिथियों के एक साथ आने के कारण श्राद्घ पक्ष पंद्रह दिन (4 से 18 सितंबर तक) का होगा। यह स्थिति द्वादशी और त्रयोदशी (16 सितंबर) को एक साथ होने से निर्मित हुई है। ज्योतिषाचार्य और पंडितों के अनुसार तिथियों के क्षय होने या बढ़ने से श्राद्घ पक्ष के दिन कम-ज्यादा होते हैं। इसका मान्यता और परंपराओं पर कोई खास असर नहीं होता है।
  • ज्ञानियोंमें अग्रगण्य हनुमानजी बुद्धि, बल, शौर्य तथा साहस के देवता तो हैं ही, साथ ही वह अपने भक्तों में दया, सत्य, अहिंसा, न्यायप्रियता, सदाचार तथा परोपकार के सद्गुणों का समावेश करके उन्हें श्रेष्ठता भी प्रदान करते हैं।
श्री हनुमान जन्म महोत्सव उत्तरऔर दक्षिण भारत में अलग-अलग तिथियों और महीनों में मनाए जाते हैं। चैत्र पूर्णिमा और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर हनमानजी की जयंती शास्त्रान्तरमें वर्णित है। सेवा और भक्ति के निष्काम आदर्श हनुमान् जी का जन्म माता अंजना के उदर से चैत्र में हुआ बताया गया है। इसमें प्रमाण एवं पुष्टि का आधार है। श्रीरामजीके जन्मार्थयज्ञ से प्राप्त चरूका एक भाग जिसे चील ले उडी थी और वायु मार्ग से वह माता अजंनाको प्राप्त हुआ था जिसे उन्होंने शंकर जी का प्रसाद समझकर ग्रहण किया था।
कार्तिक में लंका विजय से अयोध्या आगमन पर माता सीताजीके पुत्र रूप में उनका जन्म दिन मनाने की परंपरा बन गई। यहीं आती है अद्भुत रामायण की कथा जिस पर गोस्वामी तुलसीदासजीने उनकी स्तुति में लाल प्रयोग किया-
लाल देह लाली लसेअरूधड लाल लंगूर, वज्र देह दानव दलन जय जय जय कपिशू। वह सीताजीके ला हैं और माताजी ने उन्हें शुभाशीषतो लंका में अशोकवाटिकामें प्रथम भेंट में ही दे दिया था। अजर अमर गुननिधिसुत होहु,करहिबहुत रघुनायकछोहू।
अयोध्या में रामजी का राज्याभिषेक होने पर उपहार स्वरूप सीता माता ने हनुमान् जी को बहुमूल्य मोतियों की माला दी। उसके मनकेतोड तोडकर उसमें हनुमान् जी सीताराम की उपस्थिति देखने की चेष्टा कर रहे हैं। वहीं टोके जाने पर अपना वक्षस्थल फाडकर अपने हृदय में युगल जोडी की उपस्थिति दिखाई तो माता जी ने कहा, वत्स मेरे पास अमूल्य तो मात्र सुहाग का सिंदूर है जिसे सीमंतमें धारण करने से हमारे स्वामी की दीर्घायु होती है। तुम भी इसमें से थोडा सा ले लो।
हनुमान् जी ने सारे शरीर में सिंदूर पोत लिया कि सीमंतमें चुटकी भर सिंदूर से श्रीराम की आयु बढती है तो मैं सारे शरीर पर सिंदूर धारण कर उन्हें अजर-अमर ही क्यों न बना दूं। तभी से उनको सिंदूर का चोला चढने लगा।
वैसे जयन्तियांतो महामानवोंसे प्रेरण ग्रहण करने के लिए ही मनाई जाती हैं और सिंदूर का चोला भी महावीर बुद्धिमान एवं प्रथम पूज्य क्रमश:हनुमान् जी, भैरों एवं गणेशजीको चढता है। हनुमान् जी पवन पुत्र हैं उनका वेग भी पवन के समान है। ज्ञानियोंमें अग्रगण्य और बुद्धिमानों में वरिष्ठ अतुलित बलधामहैं जिनके स्वामी राम हैं। जयत्यतिबलो रामोलक्ष्मणश्चमहाबल:राजा जयतिसुग्रीवो।
राघवेणाभिपालित:दासोअहंकोसलेन्द्रस्यरामस्याक्लिष्टकर्मण11
न रावणसहस्त्रंमेयुद्धेप्रतिबलंभवेत्।
अखंड ब्रह्मचर्य,तपस्या, भक्ति और सेवा से हनुमान् जी रिद्धि-सिद्धिके दाता सभी कार्यो के संपन्न होने में अमोघ सहायक संकट हरने और सुख देने वाले बन गए। जहां होती है रामकथा वहां वह अवश्य पहुंचते हैं।
ग्यारहवें रूद्रहनुमान् रामजी के दर्शन कराने में जिनको निमित्तबनाने से गोस्वामी तुलसीदासजीकृत-कृत्य हो गए। हनुमान् जी के इष्ट हैं श्रीराम जिनकी मैत्री वे स्वयं ही सुग्रीव से कराते हैं। सीता माता का पता लगाने के लिए 100योजन का समुद्र पार कर गए तो रावण की सोने की लंका भी जला दी और लक्ष्मण के प्राणों की की रक्षा के लिए धौला गिरि से संजीवनी लाने में भी सफल रहे। रामजी ने कहा कि मैं तुमसे ऋणमुक्त नहीं हो सकता तुम तो मुझे भरत भाई की तरह ही प्रिय हो। उनकी जयंती पर हम भी हनुमान् जी से बल और बुद्धि में उनके व्रत से अनुगामी हों। उनको प्रणाम करें।
अतुलितबलधामंहेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुंज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानंवानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तंवातजातंनमामि।।
अर्थात् स्वर्ण पर्वत जैसी देह, अतुलित बल के धाम, राक्षस वन के लिए अग्नि, ज्ञानियोंमें अग्रगण्य, सभी गुणों के आगार, वानरों के स्वामी, रघुपति के प्रिय भक्त पवन पुत्र को सादर नमन व प्रणाम।

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